History of Computer in Hindi PDF Notes | कंप्यूटर का इतिहास

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नमस्कार साथियों! Rojgarbytes के इस नए लेख में आपका हार्दिक स्वागत है। आज हम Computer Awareness के उस अध्याय को 'मास्टर' करेंगे, जहाँ से अक्सर सवाल पूछे जाते हैं, जो कि है - "कम्प्यूटर का इतिहास" (History of Computer in Hindi)

जब भी कंप्यूटर के इतिहास (Computer History) की बात आती है, तो ज़्यादातर छात्रों को बस चार्ल्स बैबेज (Charles Babbage) या ENIAC का नाम याद आता है। उन्हें लगता है कि यह टॉपिक सिर्फ रटने (cramming) वाला है और इसे परीक्षा से दो दिन पहले देख लेंगे। और यकीन मानिए, यही उनकी 😨 सबसे बड़ी गलती है।

कई छात्र कंप्यूटर इतिहास और पीढ़ियों (Computer History and Generation) को मामूली समझकर छोड़ देते हैं, लेकिन परीक्षाओं (जैसे SSC, Banking, Railways) में इस खंड से 2-3 प्रश्न सीधे पूछे गए हैं। इस टॉपिक को छोड़ना आपको कट-ऑफ (Cut-off) में हजारों छात्रों से पीछे कर सकता है।

अगर आपको इस Competition भरे दौर में दूसरे छात्रों से आगे निकलना है तो आपको कॉन्सेप्ट से जुड़े गहरे और तार्किक (Logical) सवाल भी करने होंगे, तभी आप मेरिट लिस्ट में अपनी जगह बना पाएंगे।

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Rojgarbytes का यह लेख आपकी इसी समस्या का संपूर्ण समाधान है। यह सिर्फ नोट्स नहीं हैं; यह आपकी तैयारी का वह हथियार है जो आपको 📃 मेरिट लिस्ट में दूसरों से एक कदम आगे रखेगा। इस लेख में, हम न केवल पूरे इतिहास को कहानी की तरह समझेंगे, बल्कि उन Key Facts को भी हाईलाइट करेंगे जो सीधे परीक्षा में Computer History MCQ in Hindi बनकर आपके सामने आते हैं।

इस लेख में आपको मिलेंगे (In this article you will get:)

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कंप्यूटर का इतिहास: एक विस्तृत अवलोकन (History of Computer: A Detailed Overview)

कंप्यूटर का इतिहास केवल सिलिकॉन चिप्स या आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक मशीनों की कहानी नहीं है। सामान्यतः इसे चार्ल्स बैबेज (Charles Babbage) या ENIAC जैसे आविष्कारों तक सीमित मान लिया जाता है, लेकिन इसकी जड़ें इससे कहीं अधिक गहरी और पुरानी हैं। यह यात्रा वास्तव में हज़ारों वर्ष पूर्व मानव सभ्यता द्वारा 'गणना' (calculation) को सरल और सटीक बनाने के प्रयासों के साथ शुरू हुई थी, जिसमें प्राचीन यांत्रिक (mechanical) उपकरणों से लेकर जटिल गणितीय सिद्धांतों की भूमिका रही है।

शाब्दिक दृष्टिकोण से देखें तो 'Computer' शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के 'Computare' से हुई है, जिसका अर्थ है—'गणना करना'। आज हम जिस अत्याधुनिक स्वरूप का उपयोग कर रहे हैं, वह किसी एक व्यक्ति, एक दिन या एक सदी का आविष्कार नहीं है। यह सदियों के निरंतर शोध, क्रमिक विकास (evolution) और दुनिया भर के अनगिनत वैज्ञानिकों व गणितज्ञों के सामूहिक योगदान का परिणाम है।

प्रतियोगी परीक्षाओं के नज़रिए से, कंप्यूटर के विकास का यह कालक्रम (timeline) अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस अध्याय में हम विकास के उन्हीं प्रमुख पड़ावों, उनके आविष्कारकों और उन ऐतिहासिक यंत्रों की तकनीकी विशेषताओं का विस्तार से अध्ययन करेंगे, जिन्होंने एक साधारण 'गणक यंत्र' को आज के शक्तिशाली 'सुपरकंप्यूटर' में बदल दिया।

कंप्यूटर का विकास-क्रम: एक ऐतिहासिक यात्रा (Evolution of Computer: A Historical Timeline)

इतिहास को सही ढंग से समझने के लिए इसे विभिन्न कालखंडों में विभाजित करना आवश्यक है। कंप्यूटर का विकास रातों-रात नहीं हुआ, बल्कि यह सदियों के प्रयोगों का परिणाम है। अध्ययन की सुविधा के लिए हम इसे निम्नलिखित चरणों में देख सकते हैं:

1. प्रारंभिक यांत्रिक और एनालॉग युग (Early Mechanical & Analog Era)

आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक युग के उदय से सदियों पूर्व, मानव सभ्यता ने गणना (Calculation) की जटिलताओं को सुलझाने के लिए कई अनूठे प्रयास किए थे। यह कंप्यूटर के इतिहास का वह प्रारंभिक चरण था, जब मशीनों में बिजली या सॉफ्टवेयर नहीं, बल्कि केवल 'यांत्रिक क्षमता' (Mechanical Capability) थी।

इस युग में, मनुष्य ने उंगलियों पर गिनने की सीमित क्षमता से आगे बढ़कर लकड़ी, हड्डियों, गियर्स (Gears) और लीवर (Levers) के माध्यम से गणना करने वाले उपकरणों का निर्माण किया। इन शुरुआती 'मैकेनिकल डिवाइसेज' (Mechanical Devices) ने ही भविष्य के डिजिटल कंप्यूटरों के लिए एक मजबूत आधारशिला (Foundation) रखी। आइए, उन प्रमुख आविष्कारों पर नज़र डालें जिन्होंने इस युग को परिभाषित किया:

अबेकस (Abacus):

↪ परिचय और इतिहास अबेकस को दुनिया का पहला गणना यंत्र (First Calculating Device) माना जाता है। इसका आविष्कार लगभग 2500-3000 ईसा पूर्व प्राचीन बेबीलोन में हुआ था, लेकिन इसका व्यवस्थित और व्यापक विकास चीन में हुआ। यह मानव इतिहास में मशीनी गणना की शुरुआत थी।

↪ बनावट और कार्यप्रणाली यह लकड़ी का एक आयताकार फ्रेम होता है जिसमें तारों (Rods) पर मिट्टी या लकड़ी के मोती (Beads) पिरोए होते हैं। यह यंत्र स्थानीय मान (Place Value) के सिद्धांत पर काम करता है। इन मोतियों को उंगलियों से ऊपर-नीचे खिसकाकर जोड़, घटाव, गुणा और भाग जैसी गणनाएं की जाती हैं। इससे वर्गमूल (Square Root) भी निकाला जा सकता है।

↪ महत्व और उपयोग इसे 'पहला मैकेनिकल कैलकुलेटर' कहा जाता है, जिसने कंप्यूटर के विकास की नींव रखी। आज भी चीन, जापान और रूस जैसे देशों में इसका उपयोग बच्चों की मानसिक एकाग्रता और गणित तेज करने के लिए किया जाता है। नेत्रहीन छात्रों के लिए भी इसका एक विशेष रूप (क्रैनमर अबेकस) इस्तेमाल होता है।

याद रखें कि अबेकस ही वह नींव है जिस पर चार्ल्स बैबेज ने आगे चलकर कंप्यूटर की इमारत खड़ी की।

एंटीकाइथेरा मैकेनिज्म (Antikythera Mechanism):

↪ परिचय और खोज (Introduction & Discovery) एंटीकाइथेरा मैकेनिज्म प्राचीन इंजीनियरिंग का एक रहस्यमयी चमत्कार है, जिसे दुनिया का पहला एनालॉग कंप्यूटर (First Analog Computer) माना जाता है। इसका निर्माण लगभग 150-100 ईसा पूर्व (BC) के बीच प्राचीन ग्रीस में हुआ था। इसकी खोज 1901 में ग्रीस के एंटीकाइथेरा द्वीप (Antikythera Island) के पास एक डूबे हुए जहाज (Shipwreck) के मलबे से हुई थी।

↪ बनावट और कार्यप्रणाली (Structure & Working) यह वास्तव में एक जटिल खगोलीय कैलकुलेटर (Astronomical Calculator) था। यह एक जूते के डिब्बे के आकार का लकड़ी का बॉक्स था, जिसके अंदर कांस्य के गियर्स (Bronze Gears) का एक बेहद उन्नत सिस्टम (30 से अधिक गियर्स) लगा था। यह मशीन आधुनिक घड़ी की तरह चाबी या हैंडल घुमाने पर काम करती थी और सौर मंडल (Solar System) की गतिविधियों को ट्रैक करती थी।

↪ उपयोग और महत्व (Usage & Significance) इसका मुख्य काम खगोलीय स्थितियों (Astronomical Positions) को ट्रैक करना और सूर्य व चंद्र ग्रहण (Solar and Lunar Eclipses) की सटीक भविष्यवाणी करना था। हैरानी की बात यह है कि इसका उपयोग ओलंपिक खेलों (Olympic Games) के चार साल के चक्र की गणना करने के लिए भी किया जाता था। इस स्तर की सूक्ष्म तकनीक (Precision Technology) इसके 1000 साल बाद तक दोबारा नहीं देखी गई।

नेपियर्स बोन्स (Napier's Bones) - 1617

↪ परिचय और आविष्कारक (Introduction & Inventor) यह एक मैन्युअल गणना उपकरण (Manual Calculating Device) था, जिसका आविष्कार 1617 में स्कॉटलैंड के प्रसिद्ध गणितज्ञ जॉन नेपियर (John Napier) ने किया था। जॉन नेपियर वही महान वैज्ञानिक हैं जिन्होंने लघुगणक (Logarithms) का भी आविष्कार किया था। उन्होंने अपनी किताब 'रैब्दोलोगिया' (Rabdologia) में इस यंत्र का वर्णन किया था।

↪ बनावट और नामकरण (Structure & Nomenclature) इस यंत्र में हाथी दांत (Ivory), हड्डी (Bone), लकड़ी या धातु से बनी 10 आयताकार छड़ें (Rods) होती थीं। चूँकि इसके सबसे महंगे और शुरुआती संस्करण हाथी दांत (Ivory) के बने होते थे, इसलिए इसे मज़ाक में या आम भाषा में "नेपियर्स बोन्स" (Napier's Bones) कहा जाने लगा। हर छड़ पर पहाड़े (Multiplication Tables) लिखे होते थे।

↪ कार्यप्रणाली और तकनीक (Working & Technology) यह यंत्र 'लैटिस गुणा' (Lattice Multiplication) तकनीक पर काम करता था। इसका मुख्य काम गुणा (Multiplication) और भाग (Division) को आसान बनाना था। इसकी सबसे बड़ी तकनीकी खूबी यह थी कि इसने गुणा की प्रक्रिया को जोड़ (Addition) में बदल दिया था। छड़ों को सही क्रम में रखकर, उपयोगकर्ता विकर्णों (diagonals) के अंकों को जोड़कर बड़ी संख्याओं का गुणा कर सकता था।

↪ महत्व और योगदान (Significance & Contribution) नेपियर्स बोन्स ने पहली बार दशमलव बिंदु (Decimal Point) के उपयोग को स्पष्ट रूप से पेश किया। यह यंत्र उन लोगों के लिए वरदान था जो लॉगरिदम के जटिल गणित को नहीं समझते थे। इसने आगे चलकर स्लाइड रूल (Slide Rule) के आविष्कार का रास्ता साफ़ किया, जो एनालॉग कंप्यूटर का पूर्वज बना।

पास्कलाइन (Pascaline) - 1642

↪ परिचय और उद्देश्य (Introduction & Purpose) पास्कलाइन को दुनिया का पहला यांत्रिक कैलकुलेटर (First Mechanical Calculator) माना जाता है। इसका आविष्कार 1642 में महान फ्रांसीसी गणितज्ञ और भौतिक विज्ञानी ब्लेज़ पास्कल (Blaise Pascal) ने किया था। तब वे मात्र 19 वर्ष के थे। उन्होंने यह मशीन अपने पिता, जो एक टैक्स कलेक्टर (Tax Collector) थे, के काम के बोझ को कम करने के लिए बनाई थी। इसीलिए इसका शुरुआती उद्देश्य कर (Tax) और मुद्रा की गणना करना था।

↪ तकनीकी बनावट और कार्यप्रणाली (Technical Structure & Working) यह एक आयताकार लकड़ी का बॉक्स था जिसमें पीतल के गियर्स (Gears) और पहिए (Wheels) लगे होते थे। इसमें कुल 8 घूमने वाले पहिए (Rotating Dials) थे, जो दशमलव प्रणाली (Decimal System) पर काम करते थे।

  • ओडोमीटर सिद्धांत: यह मशीन आज की गाड़ियों में लगे ओडोमीटर (Odometer) के सिद्धांत पर काम करती थी।
  • ऑटोमैटिक कैरी ट्रांसफर (Automatic Carry Transfer): इसकी सबसे बड़ी तकनीकी उपलब्धि इसका 'हासिल' (Carry) सिस्टम था। जैसे ही एक पहिया 9 से 0 पर जाता था, एक विशेष दांता (Tooth) अगले पहिए को एक अंक आगे बढ़ा देता था। इसे 'सोट्वार' (Sautoir) मैकेनिज्म कहा जाता था।

↪ क्षमता और सीमाएं (Capabilities & Limitations) इसे 'एडिंग मशीन' (Adding Machine) कहा जाता था क्योंकि यह केवल जोड़ (Addition) और घटाव (Subtraction) ही सीधे तौर पर कर सकती थी।

  • घटाव की तकनीक: इसमें घटाव करने के लिए '9 के पूरक' (9's Complement) विधि का उपयोग होता था, जो थोड़ी जटिल थी।
  • गुणा और भाग (Multiplication & Division) केवल बार-बार जोड़ने या घटाने (Repeated Addition/Subtraction) की प्रक्रिया से ही संभव थे, जो काफी थकाऊ काम था।

↪ व्यावसायिक स्थिति (Commercial Status) यह पहला कैलकुलेटर था जिसे पेटेंट (Patent) कराया गया और जनता को बेचा गया। हालाँकि, यह व्यावसायिक रूप से असफल (Commercially Unsuccessful) रहा। इसके दो कारण थे: पहला, यह बहुत महंगा था, और दूसरा, उस समय के क्लर्क (Clerks) को डर था कि यह मशीन उनकी नौकरी छीन लेगी।

लेबनीज कैलकुलेटर (Leibniz Calculator) - 1673

↪ परिचय और विकास (Introduction & Development) ब्लेज़ पास्कल की मशीन केवल जोड़-घटाव में सक्षम थी। इस सीमा को तोड़ने के लिए, प्रसिद्ध जर्मन गणितज्ञ और दार्शनिक गॉटफ्रीड विल्हेम लेबनीज (Gottfried Wilhelm Leibniz) ने 1671-1673 के आसपास एक उन्नत मशीन डिजाइन की। इसे 'स्टेप रेकनर' (Stepped Reckoner) कहा जाता है। उन्होंने पास्कल की मशीन के विचारों को विस्तार दिया और उसे एक 'फोर-फंक्शन कैलकुलेटर' (Four-Function Calculator) में बदल दिया।

↪ तकनीकी सिद्धांत: स्टेप ड्रम (The Stepped Drum Mechanism) इस मशीन का दिल इसका अनोखा गियर मैकेनिज्म था, जिसे 'लेबनीज व्हील' (Leibniz Wheel) या 'स्टेप ड्रम' (Stepped Drum) कहा जाता है।

  • बनावट: इसमें साधारण गियर्स की जगह एक बेलनाकार ड्रम (Cylinder) का उपयोग किया गया था, जिस पर अलग-अलग लंबाई के 9 दांत (Teeth of incremental lengths) लगे होते थे।
  • कार्य: यह गियर खिसक कर (Slide होकर) दूसरे गियर्स के साथ संपर्क बनाता था। यही तकनीक थी जिसने मशीन को बार-बार जोड़ने की प्रक्रिया को गुणा (Multiplication) में बदलने की क्षमता दी।

↪ क्षमता और कार्य (Functions & Capabilities) यह दुनिया का पहला ऐसा यांत्रिक कैलकुलेटर (Mechanical Calculator) था जो गणित की चारों मूलभूत संक्रियाओं— जोड़ (Addition), घटाव (Subtraction), गुणा (Multiplication), और भाग (Division) — को सीधे और स्वचालित रूप से कर सकता था। यह वर्गमूल (Square Root) निकालने में भी सक्षम था, जो उस समय के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी।

↪ विरासत (Legacy) हालांकि निर्माण में जटिलता (Complexity in manufacturing) के कारण यह मशीन उस समय बहुत अधिक विश्वसनीय नहीं थी और कभी बड़े पैमाने पर नहीं बिकी, लेकिन इसका 'स्टेप ड्रम' (Stepped Drum) मैकेनिज्म आने वाले 300 वर्षों तक मैकेनिकल कैलकुलेटरों का आधार बना रहा।

  • पास्कलाइन की कमियों (खासकर गुणा और भाग की कठिनाई) ने ही लेबनीज को यह मशीन बनाने के लिए प्रेरित किया।
  • यहाँ एक बहुत ही रोचक मोड़ है। लेबनीज ने बाइनरी सिस्टम (0 और 1) की खोज की थी, लेकिन उनकी यह मशीन (स्टेप रेकनर) दशमलव प्रणाली (Decimal System) पर काम करती थी।

जैक्वार्ड लूम (Jacquard Loom) - 1801

हम कंप्यूटर इतिहास के उस पड़ाव पर हैं जहाँ 'हार्डवेयर' और 'सॉफ्टवेयर' के अलग होने की पहली झलक मिली थी। यह बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसने कंप्यूटर को इनपुट (Input)देने का तरीका बदल दिया।

↪ परिचय और आविष्कार (Introduction & Invention) कंप्यूटर के इतिहास में यह मशीन एक 'साइलेंट हीरो' की तरह है। इसका आविष्कार 1801 में फ्रांस के एक बुनकर और व्यापारी जोसेफ मैरी जैक्वार्ड (Joseph Marie Jacquard) ने किया था। यह वास्तव में कोई कैलकुलेटर नहीं था, बल्कि यह कपड़ा बुनने का एक स्वचालित करघा (Automatic Power Loom) था, जिसे रेशम (Silk) के कपड़ों पर जटिल और सुंदर डिजाइन बनाने के लिए तैयार किया गया था।

↪ तकनीकी क्रांति: पंच्ड कार्ड्स (The Revolution: Punched Cards) इस मशीन की सबसे बड़ी खासियत इसका नियंत्रण तंत्र (Control Mechanism) था। जैक्वार्ड ने कपड़े के पैटर्न को नियंत्रित करने के लिए 'पंच्ड कार्ड्स' (Punched Cards) का इस्तेमाल किया।

  • कार्यप्रणाली: ये सख्त कागज या गत्ते के कार्ड होते थे जिनमें विशेष स्थानों पर छेद (Holes) किए जाते थे।
  • बाइनरी लॉजिक की शुरुआत: यह मशीन बहुत ही सरल सिद्धांत पर काम करती थी— अगर कार्ड में छेद है (Presence of Hole), तो मशीन की सुई ऊपर उठेगी (Action ON), और अगर छेद नहीं है (Absence of Hole), तो सुई नीचे रहेगी (Action OFF)। यह अनजाने में आधुनिक बाइनरी सिस्टम (0 और 1) का पहला व्यावहारिक प्रयोग था।

↪ महत्व: हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर (Significance: Hardware & Software) जैक्वार्ड लूम ने दुनिया को पहली बार 'इंटरचेंजेबल प्रोग्राम' (Interchangeable Program) का विचार दिया।

  • मशीन (हार्डवेयर) वही रहती थी, लेकिन केवल कार्ड्स (सॉफ्टवेयर) बदलकर कपड़े का पूरा डिजाइन बदला जा सकता था।
  • इसी तकनीक ने आगे चलकर चार्ल्स बैबेज (Charles Babbage) को अपने एनालिटिकल इंजन के लिए इनपुट सिस्टम बनाने की प्रेरणा दी।

↪ ऐतिहासिक प्रभाव (Historical Impact) इस मशीन ने कपड़ा उद्योग में क्रांति ला दी थी, लेकिन इसका विरोध भी हुआ। कई बुनकरों को लगा कि यह मशीन उनकी नौकरी छीन लेगी, इसलिए उन्होंने मशीनों को तोड़ना शुरू कर दिया (जिन्हें 'लूडाइट्स' कहा गया), लेकिन तकनीक नहीं रुकी।

ध्यान दें कि जैक्वार्ड लूम ने गणना (Calculation) नहीं की, लेकिन इसने डेटा प्रोसेसिंग (Data Processing) और प्रोग्रामिंग का रास्ता दिखाया। लेडी एडा लवलेस (पहली प्रोग्रामर) ने इस मशीन के बारे में कहा था: "एनालिटिकल इंजन बीजगणितीय पैटर्न (Algebraic Patterns) को वैसे ही बुनता है जैसे जैक्वार्ड लूम फूलों और पत्तियों को बुनता है।"

2. प्रोग्रामिंग और ऑटोमेशन का उदय (The Rise of Programming & Automation)

प्रारंभिक यांत्रिक युग में हमने देखा कि मशीनें केवल 'गणना' (Calculation) तक सीमित थीं और उन्हें चलाने के लिए हर बार मानवीय हस्तक्षेप की आवश्यकता होती थी। लेकिन कंप्यूटर के इतिहास में असली क्रांति तब आई, जब मनुष्य ने मशीनों को केवल चलाना ही नहीं, बल्कि उन्हें 'निर्देश' (Instruct) देना सीखा।

अब हम इतिहास के उस सबसे महत्वपूर्ण अध्याय में प्रवेश कर रहे हैं, जहाँ 'स्वचालन' (Automation) और 'प्रोग्रामिंग' की नींव रखी गई। वैज्ञानिकों और आविष्कारकों के मन में यह विचार कौंधने लगा कि क्या कोई मशीन निर्देशों के एक सेट (Set of Instructions) को याद रखकर, बिना रुके कार्य कर सकती है?

आधुनिक कंप्यूटर की जो रूपरेखा—इनपुट, स्टोरेज और प्रोसेसिंग—हम आज देखते हैं, उसका सैद्धांतिक खाका (Theoretical Blueprint) इसी कालखंड में तैयार हुआ था। जोसेफ जैकवार्ड की बुनाई मशीन से लेकर चार्ल्स बैबेज के एनालिटिकल इंजन तक, यह यात्रा मानव बुद्धि की एक ऐसी छलांग थी जिसने भविष्य के 'स्मार्ट कंप्यूटर' का मार्ग प्रशस्त किया।

डिफरेंस इंजन (Difference Engine) - 1822

परिचय और आविष्कारक (Introduction & Inventor) यह वह मशीन थी जिसने चार्ल्स बैबेज (Charles Babbage) को दुनिया के सामने एक विजनरी के रूप में स्थापित किया। 1822 में, लंदन में उन्होंने डिफरेंस इंजन का प्रस्ताव रखा। यह इतिहास का पहला स्वचालित यांत्रिक कैलकुलेटर (Automatic Mechanical Calculator) था।

तकनीकी सिद्धांत (Technical Principle) यह मशीन एक बहुत ही विशिष्ट गणितीय सिद्धांत पर काम करती थी जिसे 'परिमित अंतर की विधि' (Method of Finite Differences) कहा जाता है।

  • कार्यप्रणाली: इस विधि की खासियत यह है कि यह गुणा (Multiplication) और भाग (Division) का उपयोग नहीं करती। इसके बजाय, यह जटिल समीकरणों को बार-बार जोड़ (Repeated Addition) की प्रक्रिया से हल करती है।
  • ऊर्जा स्रोत: चूंकि उस समय बिजली (Electricity) नहीं थी, इसलिए इसे चलाने के लिए भाप (Steam) का उपयोग किया जाना था। यह आकार में बहुत विशाल और भारी (Heavy) होने वाला था।

उद्देश्य और उपयोग (Purpose & Usage) उस समय नाविकों और खगोलविदों के लिए जो गणितीय सारणियां (Mathematical Tables) इंसान बनाते थे, उनमें बहुत गलतियां होती थीं। बैबेज का उद्देश्य था:

  1. बहुपदीय फलनों (Polynomial Functions) की सटीक गणना करना।
  2. लघुगणक सारणी (Logarithmic Tables) को बिना किसी मानवीय त्रुटि (Human Error) के तैयार करना।
  3. हार्ड कॉपी आउटपुट: यह मशीन न केवल गणना करती, बल्कि परिणामों को सीधे प्रिंट (Print) भी कर सकती थी ताकि लिखने में कोई गलती न हो।

असफलता का कारण (Reason for Failure) बैबेज ने ब्रिटिश सरकार से भारी फंडिंग लेकर इस पर काम शुरू किया। लेकिन, उस समय की धातु विज्ञान तकनीक (Metallurgy Technology) इतनी उन्नत नहीं थी कि बैबेज के सूक्ष्म गियर्स (Precision Gears) बना सके। अंततः, बजट खत्म होने और निर्माण की कठिनाइयों के कारण यह प्रोजेक्ट अधूरा रह गया।

डिफरेंस इंजन की असफलता ने बैबेज को रोका नहीं, बल्कि उन्हें और भी बड़ी मशीन सोचने पर मजबूर किया। डिफरेंस इंजन तो बस एक "कैलकुलेटर" था, लेकिन इसके बाद जो आया, वह असली "कंप्यूटर" था।

एनालिटिकल इंजन (Analytical Engine) - 1837

यह कंप्यूटर इतिहास का सबसे क्रांतिकारी मोड़ है। डिफरेंस इंजन एक 'कैलकुलेटर' था, लेकिन एनालिटिकल इंजन एक 'कंप्यूटर' था। यही वह मशीन है जिसके कारण चार्ल्स बैबेज को "कंप्यूटर का जनक" कहा जाता है।

परिचय और अवधारणा (Introduction & Concept) डिफरेंस इंजन की विफलता के बाद, चार्ल्स बैबेज ने हार नहीं मानी। 1837 में उन्होंने एक और भी महत्वाकांक्षी मशीन का डिजाइन पेश किया, जिसे एनालिटिकल इंजन (Analytical Engine) कहा गया।

  • प्रकृति: यह दुनिया का पहला सामान्य-उद्देश्यीय कंप्यूटर (General-Purpose Computer) का डिज़ाइन था। इसका मतलब था कि इसे केवल गणित नहीं, बल्कि किसी भी तरह के तर्कपूर्ण कार्य (Logical Task) के लिए प्रोग्राम किया जा सकता था।
  • ऊर्जा: यह मशीन भी भाप (Steam) से चलने के लिए डिज़ाइन की गई थी और आकार में एक लोकोमोटिव इंजन जितनी बड़ी होने वाली थी।

वास्तुकला और मुख्य घटक (Architecture & Key Components) आज के आधुनिक कंप्यूटरों में जो 'इनपुट-प्रोसेस-आउटपुट' (IPO Cycle) हम देखते हैं, उसका ब्लूप्रिंट इसी मशीन ने तैयार किया था। इसके चार मुख्य भाग थे:

  1. द मिल (The Mill - Processing Unit): यह आधुनिक कंप्यूटर के CPU (Central Processing Unit) या ALU (Arithmetic Logic Unit) के समान था। यहीं पर सभी गणितीय गणनाएं (जोड़, घटाव, गुणा, भाग) और तार्किक निर्णय (Logical Decisions) लिए जाते थे।
  2. द स्टोर (The Store - Memory): यह आधुनिक RAM (Memory) और हार्ड डिस्क की तरह था। यहाँ डेटा और परिणामों को स्टोर किया जाता था। (इसमें 50 अंकों वाली 1,000 संख्याओं को स्टोर करने की क्षमता का प्रस्ताव था)।
  3. इनपुट (Input - Reader): डेटा और निर्देश डालने के लिए पंच्ड कार्ड्स (Punched Cards) का उपयोग किया जाता था। यह तकनीक जैक्वार्ड लूम से ली गई थी।
  4. आउटपुट (Output - Printer): परिणाम दिखाने के लिए इसमें एक प्रिंटर, एक वक्र आलेखक (Curve Plotter) और एक घंटी (Bell) लगाने की योजना थी।

उन्नत तकनीकी विशेषताएं (Advanced Technical Features) यह मशीन अपने समय से 100 साल आगे थी क्योंकि इसमें दो ऐसी विशेषताएं थीं जो आज की प्रोग्रामिंग की जान हैं:

  • कंडीशनल ब्रांचिंग (Conditional Branching): मशीन निर्णय ले सकती थी (जैसे: "अगर X है, तो Y करो")।
  • लूप्स (Loops): यह निर्देशों के एक सेट को बार-बार दोहरा सकती थी।

एडा लवलेस: पहली प्रोग्रामर (Ada Lovelace: The First Programmer)

चार्ल्स बैबेज की इस मशीन को समझने वाला अगर कोई था, तो वह थीं प्रसिद्ध कवि लॉर्ड बायरन की बेटी, लेडी एडा लवलेस (Lady Ada Lovelace)

  • योगदान: उन्होंने एनालिटिकल इंजन के लिए एक विस्तृत लेख का अनुवाद किया और उसमें अपने खुद के नोट्स जोड़े। इन नोट्स में उन्होंने इस मशीन से बर्नौली संख्या (Bernoulli Numbers) की गणना करने के लिए एक एल्गोरिथ्म (Algorithm) लिखा।
  • उपाधि: चूँकि यह किसी मशीन के लिए लिखा गया पहला एल्गोरिथ्म था, इसलिए उन्हें "दुनिया की पहली कंप्यूटर प्रोग्रामर" (World's First Computer Programmer) माना जाता है।
याद रखें कि एनालिटिकल इंजन कभी बनकर तैयार नहीं हुआ क्योंकि विक्टोरियन युग (Victorian era) की इंजीनियरिंग इतनी सटीक (Precise) नहीं थी कि इसके बारीक पुर्जे बना सके। लेकिन इसका लॉजिक बिल्कुल सही था। 1940 के दशक में जब पहला इलेक्ट्रॉनिक कंप्यूटर बना, तो उसका आर्किटेक्चर लगभग वही था जो बैबेज ने 100 साल पहले कॉपी पर बनाया था।

होलेरिथ सेंसस टैबुलेटर (Hollerith Census Tabulator) - 1890

अब हम 19वीं सदी के उस दौर में पहुँच चुके हैं, जहाँ से 'डेटा प्रोसेसिंग' (Data Processing) उद्योग की असली शुरुआत हुई। चार्ल्स बैबेज की मशीनें 'मैकेनिकल' (यांत्रिक) थीं, लेकिन हरमन होलेरिथ ने उसमें 'बिजली' (Electricity) का तड़का लगा दिया।

परिचय और समस्या (Introduction & The Problem) 1880 की अमेरिकी जनगणना (Census) को पूरा करने में लगभग 7-8 साल लग गए थे। अमेरिकी सरकार चिंतित थी कि जनसंख्या इतनी तेजी से बढ़ रही है कि 1890 की जनगणना का काम 1900 आने तक भी पूरा नहीं होगा। इस समस्या को सुलझाने के लिए अमेरिकी सांख्यिकीविद् हरमन होलेरिथ (Herman Hollerith) सामने आए।

आविष्कार (The Invention) 1890 में, हरमन होलेरिथ ने एक मशीन बनाई जिसे सेंसस टैबुलेटर (Census Tabulator) कहा गया। यह दुनिया की पहली इलेक्ट्रो-मैकेनिकल मशीन (Electro-Mechanical Machine) थी। इसका मतलब है कि इसमें यांत्रिक पुर्जों के साथ-साथ बिजली का भी इस्तेमाल होता था।

तकनीकी कार्यप्रणाली (Technical Mechanism) यह मशीन पंच कार्ड्स (Punch Cards) तकनीक पर आधारित थी, लेकिन जैक्वार्ड लूम से कहीं अधिक उन्नत थी।

  1. डेटा स्टोरेज (Data Storage): लोगों की जानकारी (जैसे उम्र, लिंग, व्यवसाय) को कागज के कार्ड्स पर छेद (Punch) करके स्टोर किया जाता था।
  2. रीडिंग मैकेनिज्म (Reading Mechanism): मशीन में स्प्रिंग वाली सुइयां (Pins) होती थीं। कार्ड को पारे (Mercury) से भरी एक छोटी कटोरी के ऊपर रखा जाता था।
  3. सर्किट पूरा करना (Completing the Circuit): जहाँ कार्ड में छेद (Hole) होता था, सुई नीचे जाकर पारे को छू लेती थी, जिससे विद्युत परिपथ (Electrical Circuit) पूरा हो जाता था और एक डायल (Dial) पर गिनती 1 अंक बढ़ जाती थी।

परिणाम और प्रभाव (Result & Impact) यह मशीन इतनी तेज थी कि जो काम पहले 8 साल में होता था, वह केवल 2 से 2.5 साल के भीतर पूरा हो गया (प्रारंभिक गिनती तो केवल 6 हफ्तों में आ गई थी)। इसने स्वचालित डेटा प्रोसेसिंग (Automated Data Processing) के युग की शुरुआत की।

विरासत: IBM का जन्म (Legacy: Birth of IBM) इस सफलता के बाद, 1896 में हरमन होलेरिथ ने अपनी कंपनी खोली जिसका नाम 'टैबुलेटिंग मशीन कंपनी' (Tabulating Machine Company) था।

  • 1911: यह कंपनी अन्य कंपनियों के साथ मर्ज होकर C-T-R (Computing-Tabulating-Recording Company) बनी।
  • 1924: अंततः इसका नाम बदलकर IBM (International Business Machines) कर दिया गया, जो आज दुनिया की सबसे बड़ी कंप्यूटर कंपनियों में से एक है।
यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि अब कंप्यूटर केवल गणित (Maths) नहीं कर रहा था, बल्कि वह डेटा (Data) को संभाल रहा था। यहीं से कंप्यूटर का कमर्शियल (व्यावसायिक) उपयोग शुरू हुआ।

3. आधुनिक डिजिटल कंप्यूटर की नींव (Foundation of Modern Digital Computers)

अब तक की हमारी ऐतिहासिक यात्रा यांत्रिक पुर्जों, गियर्स और पंच कार्ड्स के इर्द-गिर्द घूम रही थी। पास्कलाइन, डिफरेंस इंजन या होलेरिथ की टैबुलेटिंग मशीन—ये सभी मुख्य रूप से 'हार्डवेयर' आधारित आविष्कार थे, जिनका प्राथमिक उद्देश्य केवल गणना की गति को बढ़ाना था।

लेकिन अब हम इतिहास के उस क्रांतिकारी मोड़ पर प्रवेश कर रहे हैं, जहाँ ध्यान 'मशीन के भौतिक ढांचे' से हटकर उसके 'तर्क' (Logic) और 'कार्यप्रणाली' पर केंद्रित हुआ। यह वह दौर था जब कंप्यूटर विज्ञान ने यांत्रिकी (Mechanics) से निकलकर गणितीय सिद्धांतों (Mathematical Theories) की ओर रुख किया।

ट्यूरिंग मशीन (Turing Machine) - 1936

परिचय और अवधारणा (Introduction & Concept) 1936 में, 24 वर्षीय ब्रिटिश गणितज्ञ एलन ट्यूरिंग (Alan Turing) ने एक रिसर्च पेपर प्रकाशित किया। इसमें उन्होंने एक ऐसी मशीन की कल्पना की जो वास्तव में भौतिक रूप में (Physically) मौजूद नहीं थी।

  • अमूर्त मॉडल: यह एक सैद्धांतिक मॉडल (Theoretical/Abstract Model) था। इसे आप छू नहीं सकते थे, यह केवल कागज और गणित में मौजूद था।
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य यह परिभाषित करना था कि आखिर "गणना" (Computation) है क्या? और क्या कोई मशीन किसी भी तरह की गणितीय समस्या को हल कर सकती है?

तकनीकी संरचना (Technical Structure) ट्यूरिंग ने इस काल्पनिक मशीन में चार मुख्य घटक माने थे, जो आज के कंप्यूटर के भी मुख्य भाग हैं:

  1. अनंत टेप (Infinite Tape): यह आज की मेमोरी (Memory/RAM) की तरह थी, जिस पर डेटा स्टोर होता था। यह टेप अनंत लंबाई की मानी गई थी, जो सेल्स (Cells) में बंटी थी।
  2. रीड/राइट हेड (Read/Write Head): यह टेप के ऊपर चलता था और डेटा को पढ़ता या बदलता था (आज के प्रोसेसर/Disk Head की तरह)।
  3. स्टेट रजिस्टर (State Register): यह मशीन की वर्तमान स्थिति को याद रखता था।
  4. नियमों की तालिका (Table of Instructions): यह बताता था कि मशीन को आगे क्या करना है (यही आज का सॉफ्टवेयर/प्रोग्राम है)।

यूनिवर्सल ट्यूरिंग मशीन (Universal Turing Machine - UTM) एलन ट्यूरिंग ने एक और क्रांतिकारी विचार दिया— 'यूनिवर्सल ट्यूरिंग मशीन'

  • उन्होंने कहा कि हमें हर काम के लिए अलग मशीन बनाने की ज़रूरत नहीं है। एक ही मशीन को अलग-अलग निर्देश (Instructions) देकर उससे कोई भी काम कराया जा सकता है।
  • यही 'प्रोग्रामेबिलिटी' (Programmability) का मूल सिद्धांत है जिस पर आपके लैपटॉप और फोन काम करते हैं।

महत्व (Significance) यह मशीन आधुनिक कंप्यूटर विज्ञान की आधारशिला (Cornerstone) है। इसने साबित किया कि जटिल समस्याओं को छोटे-छोटे चरणों (Steps) में तोड़कर एक मशीन द्वारा हल किया जा सकता है। जिसे आज हम एल्गोरिथ्म (Algorithm) कहते हैं, उसकी औपचारिक परिभाषा (Formal Definition) इसी मशीन ने दी थी।

एलन ट्यूरिंग का जीवन बहुत प्रेरणादायक और दुखद दोनों रहा। द्वितीय विश्व युद्ध में उन्होंने जर्मनी के एनिग्मा कोड (Enigma Code) को तोड़कर लाखों जानें बचाई थीं। उनके दिमाग ने ही हमें वह रास्ता दिखाया जिस पर चलकर पहला इलेक्ट्रॉनिक कंप्यूटर बना।

ज़ूस Z1 (Zuse Z1) - 1938

अब हम थ्योरी से निकलकर फिर से असली मशीनों पर आते हैं। 1930 और 40 के दशक में कई मशीनें बनीं (Z1, Mark-I)। यह कंप्यूटर इतिहास का वह खण्ड है जिसे अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है, क्योंकि यह द्वितीय विश्व युद्ध (World War II) के दौरान जर्मनी में बना था और दुनिया से कटा हुआ था। तकनीकी रूप से, यह अपने समय से बहुत आगे था।

परिचय: एक घरेलू आविष्कार (Introduction: A Home Invention) Z1 दुनिया का पहला प्रोग्राम-नियंत्रित यांत्रिक कंप्यूटर (First Program-Controlled Mechanical Computer) था।

  • समय: इसे कोनराड ज़ूस ने 1936 से 1938 के बीच बर्लिन (जर्मनी) में अपने माता-पिता के घर के लिविंग रूम (Living Room) में बनाया था।
  • स्थान: यह किसी बड़ी लैब में नहीं, बल्कि एक घर में बना था, जो इसकी सबसे अनोखी बात है।

तकनीकी बनावट: यांत्रिक और बाइनरी (Technical Structure: Mechanical & Binary) यहाँ Z1 और बाकी मशीनों (जैसे बैबेज का इंजन) में एक बहुत बड़ा अंतर है:

  1. बाइनरी सिस्टम (Binary System): बैबेज और पास्कल की मशीनें 'दशमलव' (Decimal) थीं, लेकिन Z1 दुनिया का पहला ऐसा कंप्यूटर था जो बाइनरी लॉजिक (Binary Logic - 0 और 1) और बूलियन लॉजिक (Boolean Logic) पर काम करता था।
  2. पूरी तरह यांत्रिक (Purely Mechanical): इसमें कोई बिजली का स्विच या रिले (Relay) नहीं था। यह पूरी तरह से धातु की पतली शीटों (Thin Metal Sheets) और पिनों से बना था। इसमें लगभग 20,000 पुर्जे लगे थे।
  3. क्लॉक (Clock): मशीन को चलाने के लिए एक इलेक्ट्रिक मोटर लगी थी जो 1 हर्ट्ज (1 Hz) की गति से चलती थी (यानी एक सेकंड में एक गणना), लेकिन गणना का तरीका पूरी तरह मैकेनिकल था।

Z1 का महत्व (Significance) कंप्यूटर इतिहास में Z1 का रोल बहुत अहम है क्योंकि इसने विचारधारा (Concept) बदली।

  • इसने साबित किया कि कंप्यूटर को बाइनरी सिस्टम (Binary System) और फ्लोटिंग-पॉइंट (Floating-Point) अंकगणित पर बनाया जाना चाहिए। आज के सभी आधुनिक कंप्यूटर इसी सिद्धांत (बाइनरी) का पालन करते हैं, न कि दशमलव का।

दुखद अंत (Tragic End) असली Z1 कंप्यूटर, उसके ब्लूप्रिंट्स और तस्वीरें द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1944 में बर्लिन पर हुई बमबारी में पूरी तरह नष्ट हो गए थे। बाद में 1989 में कोनराड ज़ूस ने अपनी याददाश्त के आधार पर इसका एक रेप्लिका (Replica) दोबारा बनाया।

Z1 की कहानी हमें "जुगाड़" और "दृढ़ संकल्प" सिखाती है। एक छात्र ने अपने घर की मेज पर वह तकनीक (Binary Logic) खोजी जो आज सुपरकंप्यूटर की जान है। Z1 तकनीकी रूप से भले ही अटकता था, लेकिन उसका 'दिमाग' (Logic) एकदम सही दिशा में था।

ज़ूस-Z3 (Zuse-Z3) - 1941

परिचय और संदर्भ (Introduction & Context) जहाँ अमेरिका और ब्रिटेन में विशालकाय मशीनें बन रही थीं, वहीं जर्मनी के बर्लिन में एक सिविल इंजीनियर, कोनराड ज़ूस (Konrad Zuse) ने अपने घर में ही एक क्रांतिकारी मशीन बनाई। 1941 में तैयार हुआ Z3 दुनिया का पहला पूर्णतः स्वचालित, प्रोग्राम-नियंत्रित कंप्यूटर (First Fully Automatic, Program-Controlled Computer) माना जाता है।

तकनीकी वास्तुकला (Technical Architecture) यह मशीन तकनीकी रूप से 'इलेक्ट्रो-मैकेनिकल' (Electro-Mechanical) थी, न कि पूरी तरह इलेक्ट्रॉनिक।

  1. टेलीफोन रिले (Telephone Relays): इसमें वैक्यूम ट्यूब्स (Vacuum Tubes) का नहीं, बल्कि लगभग 2,600 इलेक्ट्रो-मैकेनिकल रिले (Relays) का उपयोग किया गया था। ये खट-खट की आवाज़ करने वाले स्विच थे जो बिजली (Electricity) से चालू/बंद (ON/OFF) होते थे।
  2. बाइनरी सिस्टम (Binary System): उस समय के अन्य कंप्यूटर (जैसे मार्क-1) दशमलव (Decimal) प्रणाली पर काम करते थे, लेकिन Z3 ने आधुनिक बाइनरी अंकगणित (Binary Arithmetic - 0 और 1) का उपयोग किया, जो आज के कंप्यूटरों का आधार है।
  3. फ्लोटिंग पॉइंट (Floating Point): यह दुनिया का पहला कंप्यूटर था जिसने फ्लोटिंग-पॉइंट अंकगणित (Floating-Point Arithmetic) का उपयोग किया। यह वैज्ञानिक गणनाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण तकनीक है।

इनपुट और प्रोग्रामिंग (Input & Programming) प्रोग्राम को स्टोर करने और इनपुट देने के लिए कोनराड ज़ूस ने कागज के कार्ड्स का नहीं, बल्कि पुराने सिनेमा रील/फिल्म (35mm Punched Film) का उपयोग किया, जिसमें छेद किए गए थे। यह एक सस्ता और चतुर जुगाड़ था।

उपयोग और विनाश (Usage & Destruction) इसका उपयोग जर्मन वायुसेना के लिए विमानों के पंखों में कंपन (Wing Flutter analysis) की गणना करने के लिए किया गया। दुर्भाग्यवश, 1943 में बर्लिन पर हुए मित्र देशों के हवाई हमले (Allied Bombing) में असली Z3 मशीन नष्ट हो गई थी। (आज जो हम देखते हैं वह बाद में बनाया गया एक रेप्लिका/प्रतिकृति है)।

Z1 का Z3 से संबंध (Relation to Z3)

  • Z1 (1938): यह पूरी तरह मैकेनिकल था। इसमें धातु की प्लेटें अक्सर अटक जाती थीं, इसलिए यह बहुत भरोसेमंद (Reliable) नहीं था।
  • Z2 (1940): यह एक प्रोटोटाइप था जहाँ ज़ूस ने मैकेनिकल मेमोरी के साथ टेलीफोन रिले का प्रयोग शुरू किया।
  • Z3 (1941): यहाँ ज़ूस ने धातु की प्लेटों को हटाकर पूरी तरह इलेक्ट्रो-मैकेनिकल रिले (Relays) का उपयोग किया, जिससे मशीन भरोसेमंद बन गई।
Z3 की कहानी हमें सिखाती है कि सीमित संसाधनों में भी महान आविष्कार हो सकते हैं। कोनराड ज़ूस ने यह मशीन वैक्यूम ट्यूब्स के बिना बनाई थी, लेकिन उनका 'लॉजिक' (बाइनरी सिस्टम) आज के मॉडर्न कंप्यूटर के ज्यादा करीब था।

एटानासॉफ़-बेरी कंप्यूटर (Atanasoff-Berry Computer - ABC) - 1942

हम अब 'यांत्रिक' (Mechanical) युग से बाहर निकलकर पूरी तरह से 'इलेक्ट्रॉनिक' (Electronic)' युग में प्रवेश कर रहे हैं। यह कंप्यूटर इतिहास का सबसे बड़ा तकनीकी बदलाव (Technological Shift) था और यह बदलाव अमेरिका में हुआ, जहाँ एक और मशीन तैयार हो रही थी जिसे एबीसी (ABC - Atanasoff-Berry Computer) कहा जाता है। यह 'इलेक्ट्रॉनिक' दुनिया की पहली झलक थी।

परिचय और आविष्कार (Introduction & Invention) कंप्यूटर इतिहास में ABC का स्थान बहुत विवादास्पद और महत्वपूर्ण रहा है। इसे दुनिया का पहला इलेक्ट्रॉनिक डिजिटल कंप्यूटर (First Electronic Digital Computer) माना जाता है।

  • निर्माता: इसका आविष्कार जॉन विंसेंट एटानासॉफ (John Vincent Atanasoff) (भौतिकी के प्रोफेसर) और उनके छात्र क्लिफोर्ड बेरी (Clifford Berry) ने आयोवा स्टेट कॉलेज (Iowa State College), अमेरिका में 1937-1942 के बीच किया था।

तकनीकी क्रांति: वैक्यूम ट्यूब्स (The Revolution: Vacuum Tubes) इससे पहले के कंप्यूटर (जैसे Z3 या मार्क-1) गणना के लिए 'रिले' या 'गियर्स' का इस्तेमाल करते थे जो धीमे थे। ABC ने पहली बार वैक्यूम ट्यूब्स (Vacuum Tubes) का उपयोग किया।

  • गति: वैक्यूम ट्यूब्स पूरी तरह इलेक्ट्रॉनिक थीं (इनमें कोई घूमने वाला पुर्ज़ा नहीं था), जिससे गणना की गति यांत्रिक मशीनों की तुलना में हजारों गुना बढ़ गई। इसमें लगभग 300 वैक्यूम ट्यूब्स लगी थीं।

मेमोरी और आर्किटेक्चर (Memory & Architecture) ABC में कुछ ऐसी तकनीकें इस्तेमाल हुईं जो आज के आधुनिक कंप्यूटरों में भी दिखती हैं:

  1. पुनर्योजी संधारित्र मेमोरी (Regenerative Capacitor Memory): यह इसकी सबसे बड़ी तकनीकी खोज थी। इसमें डेटा स्टोर करने के लिए कैपेसिटर (Capacitors) से भरे हुए एक घूमने वाले ड्रम का उपयोग किया गया था। चूँकि कैपेसिटर अपनी चार्ज खो देते थे, इसलिए उन्हें बार-बार रिफ्रेश करना पड़ता था। यही तकनीक आज की DRAM (Dynamic RAM) का पूर्वज है।
  2. बाइनरी सिस्टम (Binary System): इसने गणना के लिए दशमलव (Decimal) की जगह बाइनरी अंकगणित (Binary Arithmetic - 0 और 1) का उपयोग किया, जिससे इलेक्ट्रॉनिक सर्किट बनाना आसान हो गया।

उद्देश्य और सीमाएं (Purpose & Limitations)

  • उद्देश्य: इसे सामान्य कार्यों के लिए नहीं, बल्कि विशेष रूप से रैखिक समीकरणों के सिस्टम (Systems of Linear Equations) को हल करने के लिए बनाया गया था (यह एक साथ 29 चर/variables हल कर सकता था)।
  • सीमा: यह ट्यूरिंग कम्प्लीट (Turing Complete) नहीं था और न ही इसे आधुनिक कंप्यूटर की तरह फिर से प्रोग्राम (Programmable) किया जा सकता था। यह एक विशिष्ट-उद्देश्य (Special-Purpose) कंप्यूटर था।

ऐतिहासिक विवाद (Historical Controversy) लंबे समय तक ENIAC को ही पहला कंप्यूटर माना जाता रहा। लेकिन 1973 में एक ऐतिहासिक अदालती फैसला (Honeywell v. Sperry Rand) आया, जिसमें जज ने माना कि ENIAC के आविष्कारकों ने ABC के विचारों का उपयोग किया था। तब जाकर ABC को आधिकारिक तौर पर "पहला इलेक्ट्रॉनिक कंप्यूटर" होने का सम्मान मिला।

ABC ने साबित कर दिया कि वैक्यूम ट्यूब्स से गणना संभव है। लेकिन यह मशीन बहुउद्देश्यीय (General Purpose) नहीं थी। दुनिया को एक ऐसे कंप्यूटर की तलाश थी जो मौसम की भविष्यवाणी से लेकर परमाणु बम की गणना तक सब कुछ कर सके। इसी ज़रूरत ने जन्म दिया ENIAC को लेकिन उससे पहले कुछ और आविष्कारों ने अपना करिश्मा दिखाया।

कोलोसस (Colossus) - 1943

यह कंप्यूटर इतिहास का सबसे रोमांचक हिस्सा है। यह एक "गुप्त नायक" (Secret Hero) था। जहाँ Z3 'इलेक्ट्रो-मैकेनिकल' था और ABC 'प्रोग्रामेबल' नहीं था, वहीं कोलोसस ने इन दोनों सीमाओं को तोड़ दिया।

परिचय और वर्गीकरण (Introduction & Classification) द्वितीय विश्व युद्ध (WWII) की भीषण परिस्थितियों के बीच, 1943 में ब्रिटेन के ब्लेचले पार्क (Bletchley Park) में एक गुप्त मशीन तैयार हुई। इसका नाम कोलोसस (Colossus) था।

  • परिभाषा: इसे दुनिया का पहला प्रोग्राम करने योग्य, इलेक्ट्रॉनिक, डिजिटल कंप्यूटर (First Programmable, Electronic, Digital Computer) माना जाता है।
  • अंतर: ध्यान दें, यह 'सामान्य-उद्देश्यीय' (General-Purpose) नहीं था, बल्कि एक 'विशेष-उद्देश्यीय' (Special-Purpose) कंप्यूटर था, जिसे केवल एक खास काम (कोड तोड़ने) के लिए बनाया गया था।

आविष्कारक और निर्माण (Inventor & Construction) इसका डिजाइन और निर्माण टॉमी फ्लावर्स (Tommy Flowers) ने किया था, जो पोस्ट ऑफिस अनुसंधान केंद्र के एक इंजीनियर थे। उन्होंने उस समय की आम धारणा (कि वैक्यूम ट्यूब्स अविश्वसनीय हैं) को चुनौती देते हुए इस मशीन में 1,500 से 2,400 वैक्यूम ट्यूब्स (Vacuum Tubes/Thermionic Valves) का उपयोग किया।

उद्देश्य: लोरेंज सिफर (The Target: Lorenz Cipher) अक्सर लोग कंफ्यूज होते हैं कि इसने 'एनिग्मा' (Enigma) कोड तोड़ा था। नहीं! एनिग्मा को एलन ट्यूरिंग की 'बॉम्बे' मशीन ने तोड़ा था।

  • असली काम: कोलोसस का काम हिटलर और उसके शीर्ष जनरलों (Top Generals) के बीच होने वाले टेलीप्रिंटर संदेशों (Teleprinter Messages) को डिकोड करना था, जिन्हें 'लोरेंज सिफर' (Lorenz Cipher) या 'टुनी' (Tunny) कहा जाता था। यह एनिग्मा से कहीं अधिक जटिल था।

कार्यप्रणाली और गति (Working Mechanism & Speed)

  • इनपुट: इसमें डेटा डालने के लिए पंच्ड पेपर टेप (Punched Paper Tape) का इस्तेमाल होता था।
  • ऑप्टिकल रीडर: यह एक फोटो-इलेक्ट्रिक रीडर (Photo-electric Reader) का उपयोग करता था जो 5,000 अक्षर प्रति सेकंड की रफ़्तार से टेप को पढ़ सकता था।
  • लॉजिक: यह बूलियन लॉजिक (Boolean Logic) का उपयोग करके सिफर टेक्स्ट में पैटर्न ढूंढता था।

विरासत और गोपनीयता (Legacy & Secrecy) युद्ध के बाद, इसकी तकनीक को सोवियत संघ (Russia) से बचाने के लिए विंस्टन चर्चिल के आदेश पर इन मशीनों को नष्ट (Destroyed) कर दिया गया और इसके ब्लूप्रिंट्स जला दिए गए। 1970 के दशक तक दुनिया को पता ही नहीं था कि पहला इलेक्ट्रॉनिक प्रोग्रामेबल कंप्यूटर ब्रिटेन में बन चुका था।

कोलोसस ने साबित कर दिया कि हजारों वैक्यूम ट्यूब्स एक साथ काम कर सकती हैं। इसी भरोसे ने आगे चलकर ENIAC के निर्माण का रास्ता साफ किया। कोलोसस एक 'योद्धा' था जिसने चुपचाप युद्ध जीता और फिर गायब हो गया।

हार्वर्ड मार्क-I (Harvard Mark-I) - 1944

अब हम एक ऐसे "दिग्गज" (Giant) मशीन की ओर बढ़ रहे हैं जिसने अमेरिका में कंप्यूटर युग की शुरुआत की। यह मशीन आकार में इतनी बड़ी थी कि इसे एक कमरे में रखना भी मुश्किल था।

परिचय और पूरा नाम (Introduction & Full Name) 1944 में, अमेरिका में एक विशाल मशीन का अनावरण हुआ। इसे आमतौर पर हार्वर्ड मार्क-I कहा जाता है, लेकिन इसका आधिकारिक तकनीकी नाम "IBM ऑटोमैटिक सीक्वेंस कंट्रोल्ड कैलकुलेटर" (IBM Automatic Sequence Controlled Calculator - ASCC) था।

  • विरासत: इसे चार्ल्स बैबेज के 'एनालिटिकल इंजन' का सपना सच होने जैसा माना गया। बैबेज ने जो सोचा था, उसे 100 साल बाद इस मशीन ने हकीकत में बदल दिया।

निर्माण और संरचना (Construction & Structure) इसे हार्वर्ड विश्वविद्यालय के भौतिक विज्ञानी हॉवर्ड ऐकेन (Howard Aiken) ने डिजाइन किया था और IBM के इंजीनियरों ने बनाया था।

  • विशालता: यह मशीन लगभग 51-55 फीट लंबी, 8 फीट ऊँची थी और इसका वजन करीब 5 टन था। इसमें लगभग 500 मील (800 किमी) लंबी तारें बिछी थीं।
  • इलेक्ट्रो-मैकेनिकल: यह पूरी तरह इलेक्ट्रॉनिक नहीं था (Z3 की तरह)। इसमें गणना के लिए रिले (Relays), स्विच (Switches), क्लच (Clutches) और घूमने वाली शाफ्ट (Rotating Shafts) का उपयोग होता था।
  • आवाज़: जब यह चलती थी, तो हजारों रिले के खट-खट करने की आवाज़ आती थी। इसे "सिलाई करती हुई हजारों महिलाओं" (Roomful of ladies knitting) जैसी आवाज़ कहा जाता था।

तकनीकी विशिष्टताएँ (Technical Specifications)

  1. दशमलव प्रणाली (Decimal System): जहाँ आधुनिक कंप्यूटर (और Z3) बाइनरी (0,1) पर काम करते हैं, मार्क-I दशमलव संख्या प्रणाली (Decimal Number System - Base 10) पर काम करता था। इसमें डेटा स्टोर करने के लिए काउंटर व्हील्स (Counter Wheels) का उपयोग होता था।
  2. गति: यह बहुत विश्वसनीय (Reliable) थी लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मशीनों की तुलना में बहुत धीमी (Slow) थी। इसे एक गुणा (Multiplication) करने में लगभग 3 से 5 सेकंड लगते थे।
  3. इनपुट/प्रोग्रामिंग: इसे निर्देश देने के लिए छिद्रित पेपर टेप (Punched Paper Tape) का उपयोग किया जाता था।

ऐतिहासिक घटना: "कंप्यूटर बग" (The First Computer Bug) इस मशीन से जुड़ा सबसे प्रसिद्ध किस्सा ग्रेस हॉपर (Grace Hopper) का है।

  • एक दिन मशीन ने काम करना बंद कर दिया। जांच करने पर पता चला कि एक रिले (Relay #70) के बीच में एक असली पतंगा (Moth) फंस गया था।
  • ग्रेस हॉपर ने उसे निकाला और लॉग बुक में टेप से चिपका दिया। उन्होंने लिखा: "First actual case of bug being found."
  • यहीं से सॉफ्टवेयर की गलतियों के लिए 'बग' (Bug) और उन्हें ठीक करने के लिए 'डीबगिंग' (Debugging) शब्द पूरी दुनिया में मशहूर हो गए।

उपयोग (Usage) इसका उपयोग द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में मैनहट्टन प्रोजेक्ट (Manhattan Project) के लिए किया गया था, जहाँ इसने पहले परमाणु बम (Atomic Bomb) के लिए आवश्यक गणितीय गणनाएं की थीं।

मार्क-I एक युग का अंत था। यह यांत्रिक (Mechanical) कंप्यूटरों का 'डायनासोर' था—विशाल, भारी और धीमा। इसके तुरंत बाद जो आया, उसने सब कुछ बदल दिया। वह था बिजली की रफ़्तार से चलने वाला ENIAC।

4. पूर्ण इलेक्ट्रॉनिक और स्टोर्ड-प्रोग्राम कंप्यूटर का उदय (Rise of Fully Electronic & Stored-Program Computers)

अब हम कंप्यूटर इतिहास के उस स्वर्णिम युग में प्रवेश कर रहे हैं, जिसे तकनीकी भाषा में "प्रथम पीढ़ी" (First Generation) कहा जाता है। यह वह दौर था जब कंप्यूटर प्रयोगशालाओं (Labs) से निकलकर वास्तविक दुनिया की समस्याओं को सुलझाने के लिए तैयार हो रहे थे।

इस युग की शुरुआत एक विशालकाय मशीन ENIAC से हुई, जिसने गणना की गति को अकल्पनीय स्तर पर पहुँचा दिया। लेकिन असली क्रांति तब आई जब 'वॉन न्यूमैन' (Von Neumann) ने 'स्टोर्ड प्रोग्राम' (Stored Program) का सिद्धांत दिया। इससे पहले कंप्यूटर को हर नए काम के लिए फिर से तारों (Wires) से जोड़ना पड़ता था, लेकिन अब निर्देश (Instructions) मेमोरी में सेव होने लगे।

इस खंड में हम उन मशीनों का अध्ययन करेंगे जिन्होंने आज के लैपटॉप और मोबाइल की नींव रखी—चाहे वह EDVAC का लॉजिक हो, Manchester Baby की पहली मेमोरी हो, या फिर UNIVAC-I, जो दुनिया का पहला ऐसा कंप्यूटर बना जिसे बाज़ार में बेचा जा सका।

एनिएक (ENIAC) - 1946

परिचय (Introduction) कंप्यूटर इतिहास में ENIAC का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है। यह वह मशीन है जिसने पूरी दुनिया को दिखाया कि "इलेक्ट्रॉनिक मस्तिष्क" (Electronic Brain) क्या कर सकता है। इसका पूरा नाम Electronic Numerical Integrator and Computer है।

  • पहचान: इसे दुनिया का पहला सामान्य-उद्देश्यीय इलेक्ट्रॉनिक डिजिटल कंप्यूटर (First General-Purpose Electronic Digital Computer) माना जाता है।
  • अंतर: ध्यान दें, कोलोसस (Colossus) इलेक्ट्रॉनिक था लेकिन 'सामान्य-उद्देश्यीय' नहीं था (वह सिर्फ कोड तोड़ता था)। मार्क-I (Mark-I) सामान्य-उद्देश्यीय था लेकिन 'इलेक्ट्रॉनिक' नहीं था। ENIAC में ये दोनों खूबियाँ थीं।

आविष्कारक और निर्माण (Inventors & Construction) इसका निर्माण पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय (University of Pennsylvania) के मूर स्कूल ऑफ इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में किया गया।

  • निर्माता: इसके मुख्य वास्तुकार जे. प्रेस्पर एकर्ट (J. Presper Eckert) (इंजीनियरिंग के लिए) और जॉन मौचली (John Mauchly) (तर्क/लॉजिक के लिए) थे।
  • समय: यह 1945 में बनकर तैयार हुआ और 1946 में इसे दुनिया के सामने पेश किया गया।

तकनीकी विनिर्देश (Technical Specifications) यह मशीन किसी "राक्षस" से कम नहीं थी:

  1. विशालता: इसका वजन 30 टन था और यह 1,800 वर्ग फुट (एक बड़े हॉल) में फैला हुआ था।
  2. वैक्यूम ट्यूब्स: इसमें 17,468 वैक्यूम ट्यूब्स (Vacuum Tubes), 70,000 रेसिस्टर्स और 10,000 कैपेसिटर लगे थे। जब इसे चालू किया जाता था, तो फिलाडेल्फिया शहर की लाइटें डिम (Dim) हो जाती थीं (यह एक लोकप्रिय मिथक है, लेकिन यह 150 kW बिजली खाता था)।
  3. दशमलव प्रणाली (Decimal System): यह एक बहुत महत्वपूर्ण तकनीकी तथ्य है। आज के कंप्यूटर बाइनरी (0, 1) समझते हैं, लेकिन ENIAC दशमलव प्रणाली (Decimal Number System - Base 10) पर काम करता था। यह गणना के लिए रिंग काउंटर्स (Ring Counters) का उपयोग करता था।

प्रोग्रामिंग की चुनौती (The Programming Challenge) ENIAC के पास आज की तरह कोई सॉफ्टवेयर या स्टोर्ड प्रोग्राम (Stored Program) नहीं था।

  • मैनुअल वायरिंग: इसे प्रोग्राम करने का मतलब था—हाथों से हजारों तारों (Cables) को प्लगबोर्ड (Plugboards) पर जोड़ना और स्विच सेट करना।
  • एक छोटी सी गणना के लिए इसे सेट करने में कई दिन लग जाते थे, हालांकि गणना करने में इसे केवल कुछ मिलीसेकंड लगते थे।

उद्देश्य और कार्य (Purpose & Function) इसे अमेरिकी सेना की बैलिस्टिक रिसर्च लैब (BRL) के लिए बनाया गया था।

  • मुख्य काम: तोपखाने की फायरिंग टेबल (Artillery Firing Tables) बनाना।
  • अन्य काम: इसका उपयोग पहले हाइड्रोजन बम (Hydrogen Bomb) के डिजाइन की गणनाओं और मौसम की भविष्यवाणी (Weather Prediction) के लिए भी किया गया।
ENIAC महान था, लेकिन उसकी सबसे बड़ी कमी यह थी कि उसे प्रोग्राम करना बहुत मुश्किल था। अगर आपको खेल बदलना होता, तो आपको पूरी मशीन की वायरिंग बदलनी पड़ती थी। इस समस्या को हल करने के लिए एक महान गणितज्ञ, जॉन वॉन न्यूमैन (John von Neumann) ने एक नया विचार दिया— "क्यों न प्रोग्राम को भी डेटा की तरह कंप्यूटर की मेमोरी में ही सेव कर दिया जाए?" यहीं से जन्म हुआ EDVAC (एडवैक) और स्टोर्ड प्रोग्राम कॉन्सेप्ट का।

मैनचेस्टर बेबी (Manchester Baby) / SSEM - 1948

कंप्यूटर इतिहास में यह एक बहुत बड़ा 'टर्निंग पॉइंट' (Turning Point) है। अब तक कंप्यूटरों को 'तारों' (Wires) से प्रोग्राम किया जाता था (जैसे ENIAC), लेकिन मैनचेस्टर बेबी ने दुनिया को सिखाया कि प्रोग्राम को 'मेमोरी' में कैसे रखा जाए।

परिचय और नाम (Introduction & Name) इस मशीन का आधिकारिक तकनीकी नाम 'स्मॉल-स्केल एक्सपेरिमेंटल मशीन' (Small-Scale Experimental Machine - SSEM) था। चूँकि यह एक बहुत छोटी और शुरुआती मशीन थी, इसलिए इसे प्यार से "बेबी" (Baby) उपनाम दिया गया।

  • उपलब्धि: यह दुनिया का पहला इलेक्ट्रॉनिक स्टोर्ड-प्रोग्राम कंप्यूटर (First Electronic Stored-Program Computer) था।
  • ऐतिहासिक क्षण: इसने 21 जून, 1948 को मैनचेस्टर विश्वविद्यालय (University of Manchester), यूके में अपना पहला प्रोग्राम सफलतापूर्वक चलाया। यह कंप्यूटर इतिहास का एक ऐतिहासिक दिन था।

आविष्कारक (Inventors) इसे तीन ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने मिलकर बनाया था:

  1. फ्रेडरिक "फ्रेडी" विलियम्स (Frederic "Freddie" Williams)
  2. टॉम किलबर्न (Tom Kilburn)
  3. ज्योफ टूटिल (Geoff Tootill)

तकनीकी क्रांति: विलियम्स ट्यूब और RAM (The Tech: Williams Tube & RAM) मैनचेस्टर बेबी का मुख्य उद्देश्य कोई जटिल गणना करना नहीं था, बल्कि एक नई मेमोरी तकनीक का परीक्षण करना था।

  • विलियम्स-किलबर्न ट्यूब (Williams-Kilburn Tube): यह वास्तव में एक संशोधित कैथोड-रे ट्यूब (Cathode-Ray Tube - CRT) थी (जैसी पुरानी TV में होती थी)।
  • प्रथम RAM: इस ट्यूब की स्क्रीन पर इलेक्ट्रॉनिक चार्ज (Electronic Charge) के डॉट्स के रूप में डेटा (0 और 1) स्टोर किया जाता था। यह इतिहास में रैंडम-एक्सेस मेमोरी (Random-Access Memory - RAM) का सबसे पहला रूप था।
  • क्षमता: यह केवल 32 शब्दों (Words) की मेमोरी स्टोर कर सकता था।

स्टोर्ड प्रोग्राम कॉन्सेप्ट (Stored Program Concept) ENIAC की सबसे बड़ी समस्या यह थी कि उसे री-प्रोग्राम करने के लिए तारों को बदलना पड़ता था। मैनचेस्टर बेबी ने वॉन न्यूमैन आर्किटेक्चर (Von Neumann Architecture) को हकीकत में बदला।

  • इसका मतलब था कि प्रोग्राम (निर्देश) और डेटा दोनों को कंप्यूटर की मेमोरी (RAM) में ही रखा जा सकता था।
  • अब प्रोग्राम बदलने के लिए हार्डवेयर को छूने की ज़रूरत नहीं थी, बस कीबोर्ड से नया कोड डालना था।
'बेबी' कंप्यूटर ने साबित कर दिया कि कंप्यूटर को अपनी याददाश्त (Memory) दी जा सकती है। हालाँकि यह बहुत छोटा था, लेकिन इसने भविष्य के आधुनिक कंप्यूटरों (जैसे आपका लैपटॉप) का रास्ता पूरी तरह खोल दिया। इसके तुरंत बाद इसी तकनीक पर आधारित एक "बड़ा" कंप्यूटर बना जिसे EDSAC कहा जाता है।

एडवैक (EDVAC) - 1949/1951

ENIAC एक शक्तिशाली शरीर था, लेकिन उसमें 'याददाश्त' (Memory) की कमी थी। EDVAC ने कंप्यूटर को वह याददाश्त दी।

परिचय और संदर्भ (Introduction & Context) ENIAC को बनाते समय ही एकर्ट और मौचली को महसूस हो गया था कि तारों को बार-बार बदलना (Manual Rewiring) बहुत सिरदर्द वाला काम है। उन्होंने तय किया कि अगली मशीन में प्रोग्राम को भी डेटा की तरह स्टोर किया जाएगा।

  • पूर्ण नाम: Electronic Discrete Variable Automatic Computer
  • निर्माण काल: इसका डिजाइन 1944 में शुरू हुआ, 1949 में यह बनकर तैयार हुआ और 1951 में इसे पूरी तरह से चालू (Operational) किया गया।

वॉन न्यूमैन और "फर्स्ट ड्राफ्ट" (Von Neumann & The First Draft) EDVAC की कहानी महान गणितज्ञ जॉन वॉन न्यूमैन (John von Neumann) के बिना अधूरी है।

  • 1945 में, वॉन न्यूमैन ने एक रिपोर्ट लिखी— "First Draft of a Report on the EDVAC".
  • इस रिपोर्ट ने कंप्यूटर की दुनिया बदल दी। इसमें उन्होंने बताया कि कंप्यूटर के 5 मुख्य भाग होने चाहिए: Input, Output, ALU, Control Unit और Memory
  • इसे ही आज हम 'वॉन न्यूमैन आर्किटेक्चर' (Von Neumann Architecture) कहते हैं, जिस पर आज का हर लैपटॉप और मोबाइल काम करता है।

तकनीकी चमत्कार: मरकरी डिले लाइन्स (The Tech: Mercury Delay Lines) EDVAC की मेमोरी तकनीक अपने आप में बहुत ही अनोखी और "गज़ब" थी।

  • तकनीक: इसमें डेटा स्टोर करने के लिए पारे (Mercury) से भरी लंबी ट्यूब्स का इस्तेमाल किया गया, जिन्हें 'मरकरी डिले लाइन्स' (Mercury Delay Lines) कहा जाता था।
  • कार्यप्रणाली: इसमें बिजली के पल्स (Electrical Pulse) को ध्वनि तरंगों (Sound Waves) में बदलकर पारे के अंदर भेजा जाता था। ध्वनि को ट्यूब के एक सिरे से दूसरे सिरे तक जाने में जो समय लगता था (Delay), उसी का उपयोग डेटा (0 और 1) को स्टोर करने के लिए किया जाता था।
  • क्षमता: यह लगभग 5.5 किलोबाइट (KB) डेटा स्टोर कर सकता था (जो उस समय के लिए बहुत बड़ी बात थी)।

बाइनरी क्रांति (The Binary Revolution) ENIAC दशमलव (Decimal) प्रणाली पर काम करता था, जिससे वह बहुत जटिल हो गया था (उसमें 18,000 ट्यूब्स थीं)।

  • EDVAC ने बाइनरी नंबर सिस्टम (Binary Number System - 0 और 1) को अपनाया।
  • फायदा: इससे मशीन बहुत हल्की हो गई। जहाँ ENIAC में 18,000 ट्यूब्स थीं, वहीं EDVAC में केवल 6,000 वैक्यूम ट्यूब्स और 12,000 डायोड्स (Diodes) का इस्तेमाल हुआ। यह अधिक कुशल (Efficient) और विश्वसनीय बन गया।

सीरियल प्रोसेसिंग (Serial Processing) ENIAC एक साथ कई गणनाएं करता था (Parallel), लेकिन EDVAC सीरियल प्रोसेसिंग (Serial Processing) करता था (एक के बाद एक गणना)। इससे मशीन की बनावट सरल हो गई, भले ही वह थोड़ी धीमी थी, लेकिन ज्यादा भरोसेमंद थी।

यहाँ एक विवाद भी हुआ था। EDVAC का आइडिया एकर्ट और मौचली का था, लेकिन रिपोर्ट वॉन न्यूमैन ने लिखी, जिससे सारा क्रेडिट वॉन न्यूमैन को मिल गया। इसी झगड़े के कारण एकर्ट और मौचली ने यूनिवर्सिटी छोड़ दी और अपनी खुद की कंपनी खोली। उस कंपनी ने दुनिया का पहला 'कमर्शियल' कंप्यूटर बनाया— UNIVAC।

एडसैक (EDSAC) - 1949

यह बहुत रोमांचक है कि कैसे एक विचार (EDVAC का पेपर) दूसरे देश में जाकर एक हकीकत (EDSAC) बन गया। हालाँकि EDVAC का डिज़ाइन पहले बना था, लेकिन उसे बनने में देर लगी। वहीं दूसरी तरफ, मौरिस विल्क्स ने बाजी मार ली और EDSAC को पहले तैयार कर दिया।

परिचय और दौड़ (Introduction & The Race) EDSAC का पूरा नाम Electronic Delay Storage Automatic Calculator है।

  • कहानी: 1946 में, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के मौरिस विल्क्स (Maurice Wilkes) को वॉन न्यूमैन की EDVAC वाली रिपोर्ट पढ़ने को मिली। वे इससे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने तुरंत यूके लौटकर वैसी ही मशीन बनाने का फैसला किया।
  • उपलब्धि: जहाँ 'मैनचेस्टर बेबी' केवल एक प्रयोग (Experiment) था, वहीं EDSAC दुनिया का पहला पूर्ण पैमाने का व्यावहारिक स्टोर्ड-प्रोग्राम कंप्यूटर (First Full-Scale Practical Stored-Program Computer) था। इसका मतलब था कि इसे वैज्ञानिकों के वास्तविक काम के लिए रोज़ाना इस्तेमाल किया जा सकता था।
  • लॉन्च: इसने 6 मई, 1949 को अपना पहला प्रोग्राम चलाया, जिसमें इसने वर्ग संख्याओं (Square Numbers) की एक टेबल प्रिंट की।

तकनीकी वास्तुकला (Technical Architecture)

  1. मेमोरी (Memory - Mercury Delay Lines): जैसा कि नाम में 'Delay Storage' है, इसने डेटा स्टोर करने के लिए पारे की विलंब लाइनों (Mercury Delay Lines) का उपयोग किया। इसमें स्टील के टैंकों में पारा (Mercury) भरा होता था, जिसमें ध्वनि तरंगें (Ultrasonic Pulses) डेटा ले जाती थीं। इसकी मेमोरी क्षमता 512 शब्दों (Words) की थी।
  2. वैक्यूम ट्यूब्स (Vacuum Tubes): इसमें लगभग 3,000 वैक्यूम ट्यूब्स का उपयोग किया गया था (ENIAC से कम, लेकिन बेबी से बहुत ज्यादा)।
  3. गति (Speed): यह प्रति सेकंड लगभग 650 निर्देश (Instructions) निष्पादित कर सकता था, जो उस समय के लिए बहुत तेज था।

सॉफ्टवेयर क्रांति: सब-रूटीन्स और बूटस्ट्रैप (The Software Revolution) EDSAC केवल हार्डवेयर नहीं था, इसने सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग की नींव रखी:

  • सब-रूटीन्स (Subroutines): मौरिस विल्क्स को एहसास हुआ कि प्रोग्रामर का बहुत समय एक ही कोड बार-बार लिखने में बर्बाद होता है। उन्होंने 'लाइब्रेरी ऑफ सब-रूटीन्स' (Library of Subroutines) बनाई। यानी कोड के छोटे-छोटे टुकड़े पहले से लिखकर रख लिए जाते थे, जिन्हें कोई भी अपने प्रोग्राम में जोड़ सकता था।
  • असेंबली भाषा की झलक (Precursor to Assembly): इसे प्रोग्राम करने के लिए बाइनरी (0101) की जगह अक्षरों (Mnemonics) का इस्तेमाल किया गया (जैसे जोड़ने के लिए 'A' और घटाने के लिए 'S')। यह असेंबली लैंग्वेज (Assembly Language) की शुरुआत थी।
  • इनिशियल ऑर्डर्स (Initial Orders): इसमें एक हार्ड-वायर्ड प्रोग्राम था जो मशीन चालू होते ही मेमोरी में लोड हो जाता था। इसे आज हम बूटलोडर (Bootloader) कहते हैं।

दुनिया का पहला वीडियो गेम (First Video Game) यह एक बहुत ही रोचक तथ्य है। 1952 में, ए.एस. डगलस (A.S. Douglas) ने अपनी पीएचडी थीसिस के हिस्से के रूप में EDSAC पर 'OXO' नाम का एक गेम बनाया।

  • यह टिक-टैक-टो (Tic-Tac-Toe/Zero-Kaata) का डिजिटल संस्करण था।
  • इसे कैथोड रे ट्यूब (CRT) स्क्रीन पर ग्राफिक्स के साथ खेला जाता था। इसे दुनिया का पहला ग्राफिकल कंप्यूटर गेम (Graphical Computer Game) माना जाता है।
  • EDSAC ने साबित कर दिया कि कंप्यूटर केवल गणितज्ञों के लिए नहीं, बल्कि हर तरह के वैज्ञानिकों (जीव विज्ञान, भौतिकी) के लिए उपयोगी है। इसी मशीन पर की गई गणनाओं ने बाद में डीएनए (DNA) की संरचना खोजने वाले वैज्ञानिकों (नोबेल पुरस्कार विजेताओं) की मदद की थी।

मैनचेस्टर मार्क 1 (Manchester Mark 1) - 1949

'मैनचेस्टर बेबी' ने चलना सीखा था, लेकिन मैनचेस्टर मार्क 1 वह युवा था जिसने दौड़ना शुरू किया।

परिचय और विकास (Introduction & Development) जहाँ 'बेबी' (SSEM) केवल एक प्रयोग (Prototype) था, वहीं मैनचेस्टर मार्क 1 एक पूर्ण विकसित मशीन थी।

  • निर्माता: इसे भी फ्रेडरिक विलियम्स (Frederic Williams) और टॉम किलबर्न (Tom Kilburn) की जोड़ी ने मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी, यूके में विकसित किया।
  • उद्देश्य: इसका लक्ष्य शोधकर्ताओं के लिए एक ऐसा कंप्यूटर बनाना था जिसका उपयोग जटिल गणितीय समस्याओं को हल करने के लिए व्यावहारिक रूप से किया जा सके। इसने अप्रैल 1949 में काम करना शुरू किया।

तकनीकी वास्तुकला: हाइब्रिड मेमोरी सिस्टम (Technical Architecture: Hybrid Memory System) यह इस कंप्यूटर की सबसे 'गज़ब' की जानकारी है। इसने आधुनिक मेमोरी पदानुक्रम (Memory Hierarchy) की नींव रखी।

  1. प्राइमरी मेमोरी (Primary Memory/RAM): त्वरित गणना के लिए इसने विलियम्स ट्यूब्स (Williams-Kilburn Tubes) का उपयोग किया। यह आज की RAM की तरह थी।
  2. सेकेंडरी मेमोरी (Secondary Memory/Storage): डेटा को स्थायी रूप से स्टोर करने के लिए इसने मैग्नेटिक ड्रम (Magnetic Drum) का उपयोग किया। यह आज की हार्ड डिस्क (Hard Disk) का पूर्वज था।
  3. वर्चुअल मेमोरी की झलक (Precursor to Virtual Memory): यह दुनिया का पहला ऐसा कंप्यूटर था जिसमें डेटा को मैग्नेटिक ड्रम (Storage) से विलियम्स ट्यूब (RAM) में स्वचालित रूप से ट्रांसफर किया जाता था। इसे आज हम पेजिंग (Paging) या वर्चुअल मेमोरी की शुरुआत मान सकते हैं।

क्रांतिकारी नवाचार: इंडेक्स रजिस्टर्स (Revolutionary Innovation: Index Registers) मैनचेस्टर मार्क 1 ने प्रोग्रामिंग की दुनिया को एक बहुत बड़ा तोहफा दिया— इंडेक्स रजिस्टर्स (Index Registers)

  • बी-लाइन्स (B-lines): उस समय इन्हें 'B-lines' कहा जाता था।
  • काम: इससे पहले, अगर किसी प्रोग्रामर को संख्याओं की सूची (Array) के हर नंबर में 1 जोड़ना होता था, तो उसे हर नंबर के लिए अलग कोड लिखना पड़ता था। इंडेक्स रजिस्टर ने लूपिंग (Looping) को आसान बना दिया। अब एक ही निर्देश को बार-बार दोहराकर पूरी सूची को प्रोसेस किया जा सकता था, बिना कोड बदले।

व्यावसायिक सफलता (Commercial Success) यह मशीन इतनी सफल रही कि ब्रिटेन की कंपनी Ferranti ने इसके डिजाइन को खरीदा और दुनिया का पहला 'व्यावसायिक रूप से उपलब्ध सामान्य-उद्देश्यीय कंप्यूटर' बनाया, जिसे Ferranti Mark 1 कहा गया।

यहाँ एक बारीक अंतर समझिए। SSEM (Baby) 'पहला' था, लेकिन मार्क 1 'उपयोगी' था। मार्क 1 के मैग्नेटिक ड्रम ने हमें सिखाया कि हम बहुत सारा डेटा स्टोर कर सकते हैं और जरूरत पड़ने पर उसे RAM में ला सकते हैं। यही लॉजिक आज आपके फ़ोन में भी काम करता है।

यूनिवैक-I (UNIVAC-I) - 1951

अब तक हमने जो भी कंप्यूटर देखे (ENIAC, EDVAC, EDSAC), वे सब लैब और यूनिवर्सिटी में बने कंप्यूटर देख रहे थे और सरकारी या यूनिवर्सिटी प्रोजेक्ट थे। आम जनता या बड़ी कंपनियां उन्हें खरीद नहीं सकती थीं। 

अब वक्त आ गया है उस कंप्यूटर का जो पहली बार दुकान (Market) में बिका और जिसने चुनाव के नतीजों की भविष्यवाणी करके अमेरिका को चौंका दिया। वह था - UNIVAC जिसने कंप्यूटर को बाजार (Market) में लाकर खड़ा कर दिया।

परिचय और व्यावसायिक शुरुआत (Introduction & Commercial Debut) UNIVAC का पूरा नाम यूनिवर्सल ऑटोमैटिक कंप्यूटर I (Universal Automatic Computer I) है।

  • महत्व: यह अमेरिका में उत्पादित और बेचा गया पहला व्यावसायिक कंप्यूटर (First Commercial Computer) था। "यूनिवर्सल" शब्द का अर्थ था कि यह वैज्ञानिक (Scientific) और व्यावसायिक (Commercial) दोनों तरह के डेटा (संख्या और पाठ/Text) को संसाधित करने में सक्षम था।
  • प्रथम ग्राहक: इसकी पहली यूनिट 31 मार्च, 1951 को अमेरिकी जनगणना ब्यूरो (US Census Bureau) को सौंपी गई थी।

निर्माता और कंपनी (Creators & Company) इसे भी ENIAC के जनक, जे. प्रेस्पर एकर्ट (J. Presper Eckert) और जॉन मौचली (John Mauchly) ने बनाया था।

  • उन्होंने अपनी कंपनी शुरू की थी, लेकिन फंड की कमी के कारण उसे रेमिंगटन रैंड (Remington Rand) ने खरीद लिया था। इसलिए इसे अक्सर 'रेमिंगटन रैंड यूनिवैक' भी कहा जाता है।

तकनीकी नवाचार: मैग्नेटिक टेप (Technical Innovation: Magnetic Tape) UNIVAC-I की सबसे क्रांतिकारी तकनीक इसका इनपुट/आउटपुट सिस्टम था।

  1. मैग्नेटिक टेप (Magnetic Tape): इसने धीमे पंच कार्ड्स (Punch Cards) को मुख्य इनपुट माध्यम के रूप में हटा दिया। इसने UNISERVO नामक धातु की टेप ड्राइव (Metallic Tape Drives) का उपयोग किया। यह निकल-प्लेटेड ब्रॉन्ज (Nickel-plated bronze) की टेप थी, जो डेटा को बहुत तेज गति से पढ़ और लिख सकती थी।
  2. मेमोरी (Memory): EDVAC की तरह, इसने भी मरकरी डिले लाइन्स (Mercury Delay Lines) का उपयोग किया। इसकी क्षमता 1,000 शब्दों (Words) की थी।
  3. वैक्यूम ट्यूब्स: इसमें लगभग 5,000 वैक्यूम ट्यूब्स का इस्तेमाल हुआ (जो ENIAC की 18,000 ट्यूब्स की तुलना में बहुत कम और कॉम्पैक्ट था)।

ऐतिहासिक घटना: 1952 का चुनाव (The 1952 Election Prediction) UNIVAC-I रातों-रात दुनिया भर में मशहूर हो गया जब इसने 1952 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों की सही भविष्यवाणी की।

  • सर्वेक्षण करने वाले (Pollsters) मान रहे थे कि मुकाबला कड़ा होगा, लेकिन UNIVAC ने बहुत कम डेटा के आधार पर भविष्यवाणी की कि ड्वाइट आइजनहावर (Dwight Eisenhower) भारी मतों से जीतेंगे।
  • टीवी चैनलों को लगा कि कंप्यूटर खराब हो गया है, इसलिए उन्होंने इसे नहीं दिखाया। लेकिन जब नतीजे आए, तो कंप्यूटर 100% सही था। इसके बाद "UNIVAC" शब्द कंप्यूटर का पर्यायवाची बन गया।

कंप्यूटर का इतिहास: टाइमलाइन (History of Computers: Timeline)

क्र. नाम (Name) वर्ष (Year) अविष्कारक (Inventor) महत्व (Importance)
1 अबेकस (Abacus) लगभग 3000-500 ई.पू. अज्ञात (मेसोपोटामिया/चीन) दुनिया का सबसे पुराना ज्ञात गणना उपकरण; यांत्रिक जोड़ और घटाव के लिए उपयोग किया जाता था।
2 एंटिकिथेरा मैकेनिज्म (Antikythera Mechanism) लगभग 200-70 ई.पू. अज्ञात (प्राचीन यूनान) दुनिया का पहला ज्ञात यांत्रिक एनालॉग कंप्यूटर; खगोलीय स्थितियों की गणना के लिए प्रयुक्त।
3 नेपियर्स बोन्स (Napier's Bones) 1617 जॉन नेपियर गुणा और भाग की प्रक्रिया को आसान बनाने वाला एक यांत्रिक उपकरण; लॉगरिदम के सिद्धांत पर आधारित।
4 पास्कलाइन (Pascaline) 1642 ब्लेज़ पास्कल दुनिया का पहला यांत्रिक डिजिटल कैलकुलेटर; घड़ी के गियर सिद्धांत पर काम करता था।
5 लाइबनिज़ कैलकुलेटर (Leibniz Calculator) 1694 गॉटफ्रीड विल्हेम लाइबनिज पहला यांत्रिक कैलकुलेटर जो जोड़, घटाव, गुणा, भाग और वर्गमूल निकाल सकता था।
6 जैक्वार्ड लूम (Jacquard Loom) 1801 जोसेफ जैक्वार्ड पंच्ड कार्ड का पहला उपयोग
7 डिफरेंस इंजन (Difference Engine) 1822 चार्ल्स बैबेज गणितीय सारणियों की गणना के लिए डिज़ाइन किया गया पहला स्वचालित यांत्रिक कंप्यूटर।
8 एनालिटिकल इंजन (Analytical Engine) 1837 चार्ल्स बैबेज आधुनिक कंप्यूटर की अवधारणा का जनक; इसमें ALU, मेमोरी और प्रोग्राम नियंत्रण शामिल था।
9 हॉलेरिथ सेंसस टेब्युलेटर (Hollerith Census Tabulator) 1890 हरमन हॉलेरिथ पंच कार्ड का उपयोग करने वाला पहला इलेक्ट्रो-मैकेनिकल कंप्यूटर; IBM कंपनी की नींव रखी।
10 ट्यूरिंग मशीन (Turing Machine) 1936 एलन ट्यूरिंग एक काल्पनिक मशीन जिसने कंप्यूटर विज्ञान और एल्गोरिदम की सैद्धांतिक नींव रखी।
11 ज़ूस-Z3 (Zuse Z3) 1941 कोनराड ज़ूस दुनिया का पहला पूर्णतः कार्यात्मक प्रोग्राम-नियंत्रित इलेक्ट्रो-मैकेनिकल कंप्यूटर।
12 एटानासॉफ़-बेरी कंप्यूटर (ABC) 1942 जॉन विंसेंट एटानासॉफ और क्लिफोर्ड बेरी दुनिया का पहला इलेक्ट्रॉनिक डिजिटल कंप्यूटर; बाइनरी सिस्टम और वैक्यूम ट्यूब्स का प्रयोग।
13 कोलोसस (Colossus) 1943 टॉमी फ्लावर्स दुनिया का पहला प्रोग्राम करने योग्य, इलेक्ट्रॉनिक, डिजिटल कंप्यूटर; जर्मन कोड तोड़ने के लिए बनाया गया।
14 हार्वर्ड मार्क-I (Harvard Mark I) 1944 हॉवर्ड आइकन (IBM के साथ) पहला बड़े पैमाने का स्वचालित इलेक्ट्रो-मैकेनिकल कंप्यूटर; 51 फीट लंबा और 5 टन वजनी।
15 ENIAC 1945 जे. प्रेस्पर एकर्ट और जॉन मौचली दुनिया का पहला पूर्णतः इलेक्ट्रॉनिक, प्रोग्राम करने योग्य, सामान्य-उद्देश्य वाला कंप्यूटर।
16 मैनचेस्टर बेबी (SSEM) 1948 फ्रेडरिक विलियम्स और टॉम किलबर्न दुनिया का पहला कंप्यूटर जिसने स्टोर-प्रोग्राम कॉन्सेप्ट और इलेक्ट्रॉनिक रैम का उपयोग किया।
17 मैनचेस्टर मार्क 1 1949 फ्रेडरिक विलियम्स और टॉम किलबर्न दुनिया का पहला पूर्णतः कार्यात्मक स्टोर-प्रोग्राम कंप्यूटर; इंडेक्स रजिस्टर की अवधारणा पेश की।
18 EDVAC 1949 जे. प्रेस्पर एकर्ट और जॉन मौचली स्टोर-प्रोग्राम कॉन्सेप्ट (वॉन न्यूमैन आर्किटेक्चर) पर आधारित पहला डिजाइन।
19 EDSAC 1949 मौरिस विल्क्स दुनिया का पहला practical स्टोर-प्रोग्राम कंप्यूटर जो regular computational services प्रदान करता था।
20 UNIVAC-I 1951 जे. प्रेस्पर एकर्ट और जॉन मौचली दुनिया का पहला व्यावसायिक रूप से बेचा गया सामान्य-उद्देश्य वाला कंप्यूटर।

कंप्यूटर की पीढ़ियाँ: एक संक्षिप्त अवलोकन (Generations of computers: A brief Overview)

Generation of Computer in Hindi पर विस्तृत लेख हम अपनी अगली पोस्ट में कवर करेंगे। यहाँ परीक्षा की दृष्टि से एक संक्षिप्त सारांश दिया गया है।

पीढ़ी (Generation) अवधि (Duration) मुख्य तकनीक/हार्डवेयर (Main Technology/Hardware) ऑपरेटिंग सिस्टम (Operating System) उदाहरण (Examples)
पहली पीढ़ी (First) 1946-1959 Vacuum Tubes (वैक्यूम ट्यूब) Batch Processing (बैच प्रोसेसिंग), कोई वास्तविक OS नहीं ENIAC, UNIVAC I
दूसरी पीढ़ी (Second) 1959-1965 Transistors (ट्रांजिस्टर) Batch Systems (बैच सिस्टम) IBM 1401, CDC 1604
तीसरी पीढ़ी (Third) 1965-1971 Integrated Circuits (IC) (इंटीग्रेटेड सर्किट) Time-Sharing (टाइम-शेयरिंग), Multiprogramming IBM-360 Series, PDP-8
चौथी पीढ़ी (Fourth) 1971-1980 Microprocessor (माइक्रोप्रोसेसर) (VLSI) MS-DOS, GUI आधारित OS (जैसे Apple Macintosh) IBM PC, Apple II
पांचवीं पीढ़ी (Fifth) 1980-वर्तमान ULSI (अल्ट्रा लार्ज स्केल इंटीग्रेशन) और AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) आधुनिक GUI (जैसे Windows, macOS), AI आधारित Laptops (लैपटॉप), Desktops (डेस्कटॉप), Smartphones (स्मार्टफोन)

निष्कर्ष (Conclusion)

कंप्यूटर का इतिहास (History of Computer in Hindi) केवल तारीखों और नामों का संग्रह नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि कैसे मानव की 'गणना' (Calculation) की आवश्यकता ने आज की विशाल 'सूचना प्रौद्योगिकी' (Information Technology) को जन्म दिया। अबेकस की साधारण मोतियों से लेकर ENIAC की वैक्यूम ट्यूब्स तक का यह सफर मानव बुद्धि की विकास यात्रा है।

इस विस्तृत लेख में हमने Computer History Timeline in Hindi के हर पड़ाव को गहराई से कवर किया है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि चार्ल्स बैबेज का 'एनालिटिकल इंजन' ही आज के हर आधुनिक कंप्यूटर का आधार है। यह Computer History in Hindi Pdf Notes विशेष रूप से आपकी Bank, SSC, Railway और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की ज़रूरतों को ध्यान में रखकर तैयार किए गए हैं।

याद रखें, सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता और परीक्षा में आधा-अधूरा ज्ञान खतरनाक साबित हो सकता है। इसलिए, मेरिट लिस्ट में जगह बनाने के लिए इन तथ्यों का नियमित रूप से रिवीज़न (Revision) करना अनिवार्य है।

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धन्यवाद एवं जय हिन्द! 🇮🇳

Frequently Asked Questions (FAQs)

History of Computer Pdf for Bank Exam के लिए क्या यह नोट्स पर्याप्त हैं?

जी हाँ, यह नोट्स विशेष रूप से Banking (IBPS, SBI), SSC, Railways और अन्य राज्य स्तरीय परीक्षाओं के नवीनतम पैटर्न को ध्यान में रखकर तैयार किए गए हैं। इसमें कंप्यूटर इतिहास के सभी महत्वपूर्ण तथ्यों को कवर किया गया है, जिससे बाहर प्रश्न आने की संभावना बहुत कम है।

Charles Babbage को कंप्यूटर का जनक (Father of Computer) क्यों कहा जाता है?

चार्ल्स बैबेज को उनके Analytical Engine (1837) के क्रांतिकारी कॉन्सेप्ट के कारण कंप्यूटर का जनक कहा जाता है। यह दुनिया का पहला डिजाइन था जिसमें आधुनिक कंप्यूटर के चार मूल सिद्धांत शामिल थे: इनपुट (Input), प्रोसेस (Process), स्टोरेज (Store), और आउटपुट (Output)।

दुनिया का पहला मैकेनिकल कैलकुलेटर (Mechanical Calculator) कौन सा था?

पास्कलाइन (Pascaline), जिसे 1642 में ब्लेज़ पास्कल (Blaise Pascal) ने बनाया था, दुनिया का पहला मैकेनिकल कैलकुलेटर माना जाता है। यह गियर्स और पहियों की मदद से केवल जोड़ और घटाव कर सकता था।

कंप्यूटर इतिहास में ENIAC का क्या महत्व है?

ENIAC (1946) दुनिया का पहला सामान्य-उद्देश्यीय (General-Purpose) इलेक्ट्रॉनिक डिजिटल कंप्यूटर था। इसमें लगभग 18,000 वैक्यूम ट्यूब्स (Vacuum Tubes) का इस्तेमाल हुआ था और इसने कंप्यूटिंग के इलेक्ट्रॉनिक युग की शुरुआत की थी।

स्टोर्ड-प्रोग्राम कॉन्सेप्ट (Stored-Program Concept) का क्या अर्थ है?

इसका अर्थ है कि कंप्यूटर के निर्देश (Program) और डेटा दोनों को कंप्यूटर की मेमोरी में एक साथ स्टोर किया जा सकता है। जॉन वॉन न्यूमैन द्वारा दी गई इस अवधारणा ने कंप्यूटर को बार-बार तारों को बदले बिना री-प्रोग्राम करना बहुत आसान बना दिया।

कंप्यूटर का इतिहास (Brief History of Computer) संक्षेप में क्या है?

कंप्यूटर का इतिहास गणना यंत्रों से शुरू होता है। सबसे पहले अबैकस (Abacus) आया, फिर पास्कल का कैलकुलेटर, उसके बाद बैबेज का एनालिटिकल इंजन (आधुनिक कंप्यूटर का आधार), और अंत में 1946 में ENIAC के साथ इलेक्ट्रॉनिक कंप्यूटरों का युग शुरू हुआ, जो आज के सुपरकंप्यूटर और AI तक पहुँच चुका है।

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